Vathapi
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carnatic
krithi
hamsadhwani
muthuswamy dhikshithar
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Pallavi
वातापि गण पतिं भजेऽहं
वारणास्यं वर प्रदं श्री
Anupallavi
भूतादि संसेवित चरणं
भूत भौतिक प्रपञ्च भरणं
Madhyama kāla charanam
वीत रागिणं विनत योगिनं
विश्व कारणं विघ्न वारणम्
Charanam
पुरा कुम्भ सम्भव मुनि वर
प्रपूजितं त्रि-कोण मध्य गतं
मुरारि प्रमुखाद्युपासितं
मूलाधार क्षेत्र स्थितम्
परादि चत्वारि वागात्मकं
प्रणव स्वरूप वक्र तुण्डं
निरन्तरं निटिल चन्द्र खण्डं
निज वाम कर विधृतेक्षु दण्डम्
Madhyama kāla charanam
कराम्बुज पाश बीजा पूरं
कलुष विदूरं भूताकारं
हरादि गुरु गुह तोषित बिम्बं
हंस ध्वनि भूषित हेरम्बम्